हद है !
Saturday, December 13, 2008
हद है....! भाग १
एक प्रतिथयश और पुराने अग्रेज़ी अख़बार मे आज किसीने बडेही असंवेदनशील ढंगसे कुछ लिखा है। जैसेही उसे कॉपी पेस्ट करनेका मौक़ा मुझे मिलेगा मै करुँगी।
मुम्बईमे हुए आतंकवादी हमलेमे एक सब-इंसपेक्टर ने गज़बकी जांबांज़ी दिखलाई। नाम है, तुकाराम ओम्बले।
ख़ुद मुम्बई की जनता तो इसकी गवाह थीही, लेकिन मुम्बई के डीजीपी ने , जो इस से पहले मुम्बई के पुलिस आयुक्त रह चुके हैं, और जिनकी गणना हिन्दुस्तानके बेहतरीन और ईमानदार अफसरोंमे की जाती है, कलके टाईम्स ऑफ़ इंडिया (पुणे) मे एक लेख लिखा है।( परसोंके मुम्बई एडिशन मे)। लेख पढ़ के मन और आँखें दोनों भर आतीं हैं। तुकाराम के बारेमे लिखते समय वे कहते हैं," मै अंदाज़ा नहीं लगा सकता कि, जब तुकारामने अपनी लाठी हाथमे लिए AK -47 का सामना किया होगा तो उसके मनमे कौनसे ख़याल गुज़र गएँ होंगे उसवक्त ! AK-47 की और लाठी की क्या कहीं किसी भी तौरपे तुलना की जा सकती है ? मुक़ाबला हो सकता है? तुकाराम मौक़ाये वारदात पे दौड़ा और अपने हाथोंसे उस आतंकवादी की बंदूक़ पकड़ ली जो उसके पेटमे गोलियाँ चलता रहा !उसकी इस कमालकी हिम्मतकी वजहसे कसब ज़िंदा पकड़ा गया ! कितना ज़रूरी था उसे ज़िंदा पकड़ना। तुकाराम की इस बहादुरी और समयसूचकता के कारण उसके अन्य साथी कसबको घेर के, ज़िंदा कब्ज़ा करलेने मे कामयाब रहे ! आज इस एक आतंकवादी के ज़िंदा पकड़मे आनेकी वजहसे कितनीही आतंकवादी घटनाओं का सुराग़ सुरक्षा यंत्रणा लगा पा रही है। आज इन जैसोंकी जाँ बाज़ी के कारण हमारी यंत्रणा फ़क्रसे सर उठाके खडी है !"ये अल्फाज़ हैं एक डीजीपी के जिसने अपने सहकारियों को खोया, उन्हें अश्रुपूर्ण नयनोंसे बिदा किया। वे गए तो हर परिवारको मिलने लेकिन एक हर्फ़ अपने मुहसे सांत्वना का निकाल नही पाये...केवल अपने आपसे एक वादा, एक निश्चय करते रहे कि हम इनमेसे किसी कीभी शहादत फुज़ूल जाने नही देंगे। उन्होंने औरों के बारेमे भी जो लिखा है उसे मै बादमे बता दूँगी। इसवक्त सिर्फ़ तुकारामकी बात कह रही हूँ, जिसकी एक ख़ास वजेह है। बल्कि एक अमेरिकन सिक्युरिटी अफसरने, न्यू योर्कर, इस अख़बारको बताया, " ये इतना भयंकर और जाँ बाज़ मुक़ाबला था , जिसकी बराबरी दुनियाका सबसे बेहतरीन समझा जानेवाला US का कमांडो फोर्स , द Naval SEALs भी नही कर सकता!"
अब सुनिए, इन जनाबकी, जिन्हों ने इसी अखबारमे ( The Times Of India) मे किस भद्दे तरीक़े से इसी वाक़या के बारेमे लिखा," चलो कहीं तो किसी पोलिस वालेका मोटा पेट काम आया "! कहनेका मन करता है इनसे, कि आपका तो कोई भी हिस्सा देशके किसी काम ना आता या कभी आयेगा ! शर्म आती है कि लिखनेवाला सिर्फ़ इस देशका नही महाराष्ट्र का रहनेवाला है ! अपने आपको क्या समझता है ? कोई बोहोत बड़ा बुद्धी जीवी ? गर हाँ, तो फ़िर हर बुधीजीवी के नामपे ये कलंक है...! इसतरह सोचने से पहले ये व्यक्ती शर्म से डूब कैसे नही गया ?
मै अधिकसे अधिक पाठकों की इस लेखपे प्रतिक्रया चाहती हूँ, उम्मीद है मेरी ये इच्छा आप लोग पूरी करेंगे !
इसके दूसरे भागमे मै अन्य शहीदों के बारेमे कुछ जानकारी दूंगी, जो अधिकतर लोगों को शायद पता नही होगी।
इंतज़ार है।
क्रमशः
मुम्बईमे हुए आतंकवादी हमलेमे एक सब-इंसपेक्टर ने गज़बकी जांबांज़ी दिखलाई। नाम है, तुकाराम ओम्बले।
ख़ुद मुम्बई की जनता तो इसकी गवाह थीही, लेकिन मुम्बई के डीजीपी ने , जो इस से पहले मुम्बई के पुलिस आयुक्त रह चुके हैं, और जिनकी गणना हिन्दुस्तानके बेहतरीन और ईमानदार अफसरोंमे की जाती है, कलके टाईम्स ऑफ़ इंडिया (पुणे) मे एक लेख लिखा है।( परसोंके मुम्बई एडिशन मे)। लेख पढ़ के मन और आँखें दोनों भर आतीं हैं। तुकाराम के बारेमे लिखते समय वे कहते हैं," मै अंदाज़ा नहीं लगा सकता कि, जब तुकारामने अपनी लाठी हाथमे लिए AK -47 का सामना किया होगा तो उसके मनमे कौनसे ख़याल गुज़र गएँ होंगे उसवक्त ! AK-47 की और लाठी की क्या कहीं किसी भी तौरपे तुलना की जा सकती है ? मुक़ाबला हो सकता है? तुकाराम मौक़ाये वारदात पे दौड़ा और अपने हाथोंसे उस आतंकवादी की बंदूक़ पकड़ ली जो उसके पेटमे गोलियाँ चलता रहा !उसकी इस कमालकी हिम्मतकी वजहसे कसब ज़िंदा पकड़ा गया ! कितना ज़रूरी था उसे ज़िंदा पकड़ना। तुकाराम की इस बहादुरी और समयसूचकता के कारण उसके अन्य साथी कसबको घेर के, ज़िंदा कब्ज़ा करलेने मे कामयाब रहे ! आज इस एक आतंकवादी के ज़िंदा पकड़मे आनेकी वजहसे कितनीही आतंकवादी घटनाओं का सुराग़ सुरक्षा यंत्रणा लगा पा रही है। आज इन जैसोंकी जाँ बाज़ी के कारण हमारी यंत्रणा फ़क्रसे सर उठाके खडी है !"ये अल्फाज़ हैं एक डीजीपी के जिसने अपने सहकारियों को खोया, उन्हें अश्रुपूर्ण नयनोंसे बिदा किया। वे गए तो हर परिवारको मिलने लेकिन एक हर्फ़ अपने मुहसे सांत्वना का निकाल नही पाये...केवल अपने आपसे एक वादा, एक निश्चय करते रहे कि हम इनमेसे किसी कीभी शहादत फुज़ूल जाने नही देंगे। उन्होंने औरों के बारेमे भी जो लिखा है उसे मै बादमे बता दूँगी। इसवक्त सिर्फ़ तुकारामकी बात कह रही हूँ, जिसकी एक ख़ास वजेह है। बल्कि एक अमेरिकन सिक्युरिटी अफसरने, न्यू योर्कर, इस अख़बारको बताया, " ये इतना भयंकर और जाँ बाज़ मुक़ाबला था , जिसकी बराबरी दुनियाका सबसे बेहतरीन समझा जानेवाला US का कमांडो फोर्स , द Naval SEALs भी नही कर सकता!"
अब सुनिए, इन जनाबकी, जिन्हों ने इसी अखबारमे ( The Times Of India) मे किस भद्दे तरीक़े से इसी वाक़या के बारेमे लिखा," चलो कहीं तो किसी पोलिस वालेका मोटा पेट काम आया "! कहनेका मन करता है इनसे, कि आपका तो कोई भी हिस्सा देशके किसी काम ना आता या कभी आयेगा ! शर्म आती है कि लिखनेवाला सिर्फ़ इस देशका नही महाराष्ट्र का रहनेवाला है ! अपने आपको क्या समझता है ? कोई बोहोत बड़ा बुद्धी जीवी ? गर हाँ, तो फ़िर हर बुधीजीवी के नामपे ये कलंक है...! इसतरह सोचने से पहले ये व्यक्ती शर्म से डूब कैसे नही गया ?
मै अधिकसे अधिक पाठकों की इस लेखपे प्रतिक्रया चाहती हूँ, उम्मीद है मेरी ये इच्छा आप लोग पूरी करेंगे !
इसके दूसरे भागमे मै अन्य शहीदों के बारेमे कुछ जानकारी दूंगी, जो अधिकतर लोगों को शायद पता नही होगी।
इंतज़ार है।
क्रमशः
पढकर वेदना हुई । ऐसा लिखना तो दूर,कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता है ?
युध्द काल में तो हर कोई देश भक्त होता है (होना ही पडता है) किन्तु किसी भी कौम की देश भक्ति की, वतनपरस्ती की वास्तविक परीक्षा सदैव ही शान्तिकाल में होती है ।
आपने इस बात को उठाया - अभिनन्दन ।
bahut bahaduri ka kam kiya tukaram ne..aisi bahaduri ko salaam.. naman
tukaraam ji ne bahaduri bhara jo karanama kar dikhaya hai unki bahaduri ko mai salaam karata hun.shat shat naman karta hun. dhanyawad.
tukaram ji ko naman aur unki bahaduri bahut mayane rakhti hai.kaise koi aise behuda lafz keh sakta hai wo bhi ek patrakaar,jo ke khabar dokhane ke likhne ke alwa kuch nahi karte.khair shahid ki shahadat ko koi nahi bhulega.
tukaram ji ke sath sath sare hindustan ke jabanj sipahiyon ko mera salam...
regards
arsh
ऐसी अख़बारों और लिखने वालों का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए...ये लोग किसी को कुछ दे तो सकते नहीं सिवाय दूसरों के काम में दोष निकलने के...धिक्कार है ऐसी पत्रिकारिता पर...तुकाराम जैसे लोग हैं तभी तो हम लोग आज साँस ले पा रहे हैं....नमन है ऐसे वीरों को.
नीरज
उस बड़े और शरीफ आदमी की टिपण्णी वाली पेपर कटिंग भी स्केन कर के लगाइए.
kitni nichi soch hai....
kya aise bhi log hote hain jo is balidaan ko is tarhan se kahainge ki lage jaise gali de rahe hon...
badi sharm ki baat hai aur ye sochne ki baat hai wo article chapa bhi aur kiski marzi se chapa gaya wo sab kis kism ke log hain us sipahi ke balidaan nahi motape ko dekha gaya kyunki publicity karni thi news paper ki??
kya har jagah naam dulat aur shorat hi aati hai???
कितनी शर्मनाक बात है :-(
आज़ादी है कि हम हमारी बातेँ
खुलकर कहेँ
परँतु किसी भी बात कहने के पहले इन्सानियत के तराज़ू पर
तौल कर मुँह खोलेँ
ये भी जरुरी है -
आप ने ध्यान दिलाया तब पता चला - कौन हैँ ये भद्दा मजाक करनेवाले ? उन्हेँ जूते मारीये ...
और मुँह पर टेप लगाकर
मुँह बँद करेँ इनका -
लावण्या
इस तरह के बदतमीज लोगों का तो सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। जो एक बहादुर की शहादत का मजाक उड़ाते हैं।
तुकाराम ओम्बले का हमे दिल से आदर सत्कार करना चाहिये उस वीर की वजह से आज कितने लोग बच गये, ओर कितने भेद खुले है दुशमन के. आप इस कमीने अखबार वाले का नाम भी जरुर देती, ताकि लोग इस से खुब नफ़रत करे, ऎसे अख्वार वाले इस देश के दुशमन है.
तुकाराम ओम्बले को दिल से सलाम, चाहि वो किसी भी स्टॆट का हो है तो हमारा ही भाई, ओर हमारे लिये ही उस वीर ने सारी गोलियां खाई.
धन्यवाद
Sabhika dhanyawad....maaibhi yahi chahti hun ki mere alawabhi aur bohotse log is tarahke leke apna tiraskar zahi karen ! Kamse us akhbaar to online ek khula khat likhen, jaise maine Raj Thakreko likha aur ab in janabko likhnewaali hun,,,,saath akhbaarko bhi ki apne patrakarita ke zimmedaaree kee garimaa banayen rakhen ! Ye nahi ki likhneki aazaadi hai to uska galat istemaal ho......gar in shaheedon ke rote bilakhte wariwaar is tarahki warta akhbaar me padh len to kya guzregi unpe ??
Mera scanner bigad gaya hai...theek hotehi mai uska poora byoraa doongi....paper cutting ke saath.....yaqeen rakhiye.
Police ki aisee image banane ke liye media aur hindi filmen, donohi zimmedaar hain...Ab samay aaya hai ki ham aise logonko aade haathon le.....aapmese koyibhi chup na rahe......paper cuttnka intezaar karnese pelehi uska, filhaal anamik hai, dhikkar karen.....jahan, kar sakte hain karen,,,,doston ke saath wartalaame ya likhke...jaisebhi ho, kuchh na kuchh rozhi deshke liye chhotasahi sahi, qadam uthayen.....qadam dar qadan manzilen milhi jayengi.....sirf janjagruti kee neetaant awashyktaa hai......aaj kare so ab kar !Hamne liye chhote chhote qadahi samaj ko behtariki or leja sakten hain....karen zaroor...
dukh hai, sharm hai !
ek desh ke taur par ham na TUKARAM jaise balidaniyon ka naman kar pate hain na to kisee mirjafar aur jaichandon ko saza hee de pate hain.
bahut hee fakhr hai ki aapme ek sanvedansheel insaan to hai hee, hindustan ke ek bachche kee jimmedaree bhee hai.
aapka jazba aapkee lalkar aur aapka dard ham sabhee ka hai. use naman !
शमा जी, बहुत बढिया लिख रही हैं आप...सबसे बडी बात आपने कितनी बारीकी से हर घटना को उरेका
है ...कैसे याद रखा सबकुछ और कैसे अपना मानसिक संतुलन बनाये रखा...? ये मैं इसलिए कह रही हूँ
क्योंकि ....मन भारी हो रहा यार फिर कभी...।
अत्यन्त दुखद और असंवेदनशीलता है .
जिसको पढने में ही अच्छा नहीं लग रहा है वह करने में कैसा लगा होगा .
तुकाराम जी को श्रधान्जली.
aaj aapke is lekh ko padkar man bhi ro utha..
hamre desh mein aise na jaane kitne shahid hai ..
main unhe naman karta hoon ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
ye sab parhne k baad mam apse sirf itna hi keh sakta hoon...kyonki mai bhi 1 patrakar hoon isliye us patrakar ki galti ki kshma yachna karta hoon...asha hai aap maaf kar dengi...