मेरा अब यही मकसद ....
Saturday, July 26, 2008
आजसे मेरा मकसद !
मैंने हालहीमे एक मूवी मेकिंग का कोर्स किया। अपनीही कहानी(जो मेरे ब्लॉग पे मौजूद है) एक छोटी फिल्मभी बना डाली। उसीका सम्पादन आजकल कर रही हूँ।
कल बंगलौर मे हुए बम धमाकों का समाचार मिला और आज शामसे सुनती जा रही हूँ अहमदाबाद मे हो रहे बम धमाकोंके बारेमे। इस फिल्मका सम्पादन करते, करते सोंचमे पडी थी की आगे अपने इस नए माध्यम का कैसे प्रयोग करूँ। एक और कहानी," दयाकी दृष्टी सदाही रखना " पे मेरा ध्यान केंद्रित हो रहा था। शायद वो मै बनाभी लूँगी क्योंकि उसमे जाने अनजाने कुछ ऐसे विषयों पे लिख बैठी हूँ, जो आजके ज़मानेमे काफी सुसंगत हैं। ( ये कथाभी मेरे ब्लॉग पे मौजूद है)। पर आजके बादसे मेरा मुख्य मक़सद रहेगा, आतंकवाद्के ख़िलाफ़ तथा जातीयवाद्के ख़िलाफ़ अपने हर माध्यम का उपयोग करना।
आप सभीसे गुज़ारिश है की मेरा "प्यारकी राह दिखा दुनियाको" ये लेख अवश्य पढ़ें। ये गुजरात मे हुए क़ौमी फसादों के बाद लिखा था। मेरे विचार से ये लेख आज उतनाही सुसंगत है, जितनाकी तब था। बडेही अफसोसकी बात है। काश! ऐसा न होता!!लेकिन इस राह्पे मेरे साथ कोई चले न चले मुझे चलनाही होगा। मेरे दादा-दादी ने अपना जीवन इस मुल्क की आज़ादीकी लड़ाई मे समर्पित कर दिया। हम आजभी आतंकवाद के शिकंजेमे जकडे हुए हैं। मुझे अपना जीवन इस शिकंजेसे मेरे देशको मुक्त करनेकी सहायतामे बिता देना है।
मुझे नही मालूम के मै इस मक़सद मे कितनी सफल रहुँगी, लेकिन शुरुआत तो करनीही है।
कल बंगलौर मे हुए बम धमाकों का समाचार मिला और आज शामसे सुनती जा रही हूँ अहमदाबाद मे हो रहे बम धमाकोंके बारेमे। इस फिल्मका सम्पादन करते, करते सोंचमे पडी थी की आगे अपने इस नए माध्यम का कैसे प्रयोग करूँ। एक और कहानी," दयाकी दृष्टी सदाही रखना " पे मेरा ध्यान केंद्रित हो रहा था। शायद वो मै बनाभी लूँगी क्योंकि उसमे जाने अनजाने कुछ ऐसे विषयों पे लिख बैठी हूँ, जो आजके ज़मानेमे काफी सुसंगत हैं। ( ये कथाभी मेरे ब्लॉग पे मौजूद है)। पर आजके बादसे मेरा मुख्य मक़सद रहेगा, आतंकवाद्के ख़िलाफ़ तथा जातीयवाद्के ख़िलाफ़ अपने हर माध्यम का उपयोग करना।
आप सभीसे गुज़ारिश है की मेरा "प्यारकी राह दिखा दुनियाको" ये लेख अवश्य पढ़ें। ये गुजरात मे हुए क़ौमी फसादों के बाद लिखा था। मेरे विचार से ये लेख आज उतनाही सुसंगत है, जितनाकी तब था। बडेही अफसोसकी बात है। काश! ऐसा न होता!!लेकिन इस राह्पे मेरे साथ कोई चले न चले मुझे चलनाही होगा। मेरे दादा-दादी ने अपना जीवन इस मुल्क की आज़ादीकी लड़ाई मे समर्पित कर दिया। हम आजभी आतंकवाद के शिकंजेमे जकडे हुए हैं। मुझे अपना जीवन इस शिकंजेसे मेरे देशको मुक्त करनेकी सहायतामे बिता देना है।
मुझे नही मालूम के मै इस मक़सद मे कितनी सफल रहुँगी, लेकिन शुरुआत तो करनीही है।
शुभकामनाएं ।
bahut achha shama ji
aapke vicharon se main sahmat hoon. aapane ek bahut achha uddeshya chuna hai. aap kamyab hongi aisa mera vishvas hai. main bhi ek dharavahik bana raha hoon. achha laga ki aap making movie ke saath desh seva ka bhi jajba rakhati hain.
shivraj
zaroor kamyaab hongi,aapka maksad achha hai to khuda bhi aapki madad karega.badhai aapko achhi shuruwat ke liye
i wud luv to watch dat film . how can i? possible?
aap zarur kaamyab hongi .. emaandari se ki gayi shuruwat uhi zaya nahi hoti hai ...shubhkaamnaye ...
गुजरते वक़्त के साथ शायद ये बम्ब धमाके हमें ओर संवेदनहीन बना दे ...पर जिंदगी को चलते रहना है ओर इंसानों को इंसानी ज़ज्बे को जिंदा रखना है.....
अच्छी पोस्ट,
और शुभकामनाए.......
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं
मेरी भी बहुत सुभ कामनाएं आपको । आपकी मूवी कैसे देख पायेगे ?