जा उड़ जारे पंछी ! (अन्तिम)
जा,उड़ जारे पंछी!६)(माँ का अपनी बेटीसे मूक संवाद)
और फिर तेरे सिंगारके दिन शुरू हो गए!!तुझे शोर शराबा पसंद नही था। संगीत जैसे किसी कार्यक्रमका आयोजन नही था,लेकिन इस मौके के लिए मौज़ूम हों, ऐसे कुछ ख़ास गीत CDs मे टेप करा लिए थे...सब पुराने, मीठे, शीतल, कानोको सुहाने लगनेवाले !धीमी आवाजमे वो बजते रहे,लोग आते जाते रहे, खानपान होता रहा। मेरी अपनी कुछ सहेलियों को तथा कुछ रिश्तेदारों को मै वर्षों बाद मिलनेवाली थी!
तेरी हथेलियों तथा पगतलियों पे हीना सजने लगी तो मेरी आँखें झरने लगी...... इतनी प्यारी लगी तू के, मैंने अपनी आँखों से काजल निकाल तेरे कानके पीछे एक टीका लगा दिया....... हर माँ को अपनी बेटी सुंदर लगती है,और हर दुल्हन अपनी-अपनी तौरसे बेहद सुंदर होती है.......
हीना लगनेके दूसरे दिन बंगलोर के लिए प्रस्थान..... वहाँ के अलग रीतरिवाज...तेरे कपड़े,साडियाँ,ज़ेवरात,कंगन-चूडियाँ, तेरा सादा-सादा लेकिन मोहक सिंगार....यही मेरी दुनिया बन गयी!!मैंने बिलकुल अलग ढंगसे तेरी चोलियाँ सिलवायीं थी। काफी पुराने बंगाली ढंग का मुझपे असर था। मेरी बालिका वधु!!ये ख़याल जैसा मेरे मनमे आया वैसाही तेरी मासी के मनमेभी आया........ तेरी साडियाँ,चोलियाँ,जेवरात सबकुछ बेहद सराहा गया।
फेरे ख़त्म हुए और मेरे मनका बाँध टूट गया!! अपनी माँ के गले लग मैंने अपने आसूँओ को राहत देदी। उस वक्त की वो तस्वीर....एक माँ,दूसरी माँ के गले लग रो रही थी...एक माँ अपनी बिटियासे कह रही थी...यही तो जगरीत है मेरी बच्ची ...आज तेरी दुनिया तुझसे जुदा हो रही है...सालों पहले मैनेभी अपनी दुनियाको ऐसेही बिदा कर दिया था!....
मेरे वो रिमझिम झरते नयनभी तेरे गालों पे कुछ तलाश रहे थे....बस एक बूँद जो बरसों पहले तूने मुझे भेंट की थी....बस एक बूँद अपनी तर्जनी पे लेके कुछ पल उसे मै तेरी तरफसे मुझे मिला सबसे हसीन तोहफा समझने वाली थी!!सिर्फ़ एक मोती!!पर उस वक्त मै वो तोह्फेसे वंचित रह गयी....
और मुंबई का वो स्वागत समारोह! उसके अगलेही दिन तू फिर बंगलोर, अपनी ससुराल चली गयी। तेरे लौटने के दो दिनों बाद राघव आ गया........
तुम्हारी बिदायीके उन आखरी दो दिनोमे मै लगातार बातें करती रही। कबके भूले बिसरे प्रसंग,किस्से याद करती रही...उस बडबड के पीछे कारण था.....मुझे अपने मनकी अस्वस्थता,चलबिचल, तेरे बिरह्के आँसू, और न जानू क्या कुछ छुपाना था....तुझे हवाई अड्डे पे से लाने गयी थी, तब भी मैंने इसीतरह लगातार बातें की थी,साथ आयी तेरी मासी के पास....अति उत्साह और हजारों शंका कुशंकाएँ....सब मुझे दुनियासे छुपाना था!!
क्या अब तू सच मे पराई हो गयी?तुझे एक किसी इख्तियारसे कुछ कहनेके दिन बीत गए??
"चलो,चलो सामान नीचे ले जाना शुरू करो....!"तेरे पिताकी आवाज़। आख़री वक़त मैंने तेरी ९ वार की कांजीवरम से दो खूबसूरत रजाईयाँ बना डाली!!कमसे तुम दोनों उसे देख तो सकोगे इस बहने, इस्तेमाल तो होंगी...वरना वहाँ पड़े,पड़े उनका क्या हश्र होता??राघव ने ख़रीदी हुई किताबे निकालके इनकी बक्सों मे जगह बना ली। मैंने बादमे सी-मेल से उन किताबोंको भेज देनेका सोंच लिया....
हम सब परिवारवाले तुझे बिदा करने नीचे आ गए। विमान सुबह ४ बजे उडनेवाला था। मुझे सभी ने हवाई अड्डे पे जानेसे रोका। तेरे पिता और भाई गाडीमे बैठे, साथ तू और राघव भी......
उस एक मोतीकी चाह अधूरी ही रह गयी...अब तेरा मेरा ये बिरह कितने दिनोका??गाडी चल पडी तो मन बोला, जा मेरे प्यारे पँछी...जा उड़ जा....उड़ जा अपने आसमान मे दूर,दूर, ऊचाईयों तक पोहोंच जा...!लेकिन मेरी चिडिया,जब कभी माँ याद आए,इस घोंसलेमे उडके चली आना...मेरे पंखोंसे अधिक सुरक्षित,शीतल जगह तुझे दुनिया मे दूसरी कोई नही मिलेगी। थक जाए तो विश्राम के लिए चली आना। अब तो हमारे आकाशभी अलग-अलग हो गए हैं...तेरे आकाशमे मुक्त उड़ान भर ले मेरे बच्चे!!पर इस घोंसलेको भुला न देना!!
जब तेरी दुनिया मे सूरज पूरबमे लालिमा बिखेरेगा,तब मेरे यहाँ सूनी-सी शाम ढलेगी...तभी तो लगता है, हमारे आसमान,हमारे क्षितिज अब कितने जुदा हो गए??
समाप्त
तेरी हथेलियों तथा पगतलियों पे हीना सजने लगी तो मेरी आँखें झरने लगी...... इतनी प्यारी लगी तू के, मैंने अपनी आँखों से काजल निकाल तेरे कानके पीछे एक टीका लगा दिया....... हर माँ को अपनी बेटी सुंदर लगती है,और हर दुल्हन अपनी-अपनी तौरसे बेहद सुंदर होती है.......
हीना लगनेके दूसरे दिन बंगलोर के लिए प्रस्थान..... वहाँ के अलग रीतरिवाज...तेरे कपड़े,साडियाँ,ज़ेवरात,कंगन-चूडियाँ, तेरा सादा-सादा लेकिन मोहक सिंगार....यही मेरी दुनिया बन गयी!!मैंने बिलकुल अलग ढंगसे तेरी चोलियाँ सिलवायीं थी। काफी पुराने बंगाली ढंग का मुझपे असर था। मेरी बालिका वधु!!ये ख़याल जैसा मेरे मनमे आया वैसाही तेरी मासी के मनमेभी आया........ तेरी साडियाँ,चोलियाँ,जेवरात सबकुछ बेहद सराहा गया।
फेरे ख़त्म हुए और मेरे मनका बाँध टूट गया!! अपनी माँ के गले लग मैंने अपने आसूँओ को राहत देदी। उस वक्त की वो तस्वीर....एक माँ,दूसरी माँ के गले लग रो रही थी...एक माँ अपनी बिटियासे कह रही थी...यही तो जगरीत है मेरी बच्ची ...आज तेरी दुनिया तुझसे जुदा हो रही है...सालों पहले मैनेभी अपनी दुनियाको ऐसेही बिदा कर दिया था!....
मेरे वो रिमझिम झरते नयनभी तेरे गालों पे कुछ तलाश रहे थे....बस एक बूँद जो बरसों पहले तूने मुझे भेंट की थी....बस एक बूँद अपनी तर्जनी पे लेके कुछ पल उसे मै तेरी तरफसे मुझे मिला सबसे हसीन तोहफा समझने वाली थी!!सिर्फ़ एक मोती!!पर उस वक्त मै वो तोह्फेसे वंचित रह गयी....
और मुंबई का वो स्वागत समारोह! उसके अगलेही दिन तू फिर बंगलोर, अपनी ससुराल चली गयी। तेरे लौटने के दो दिनों बाद राघव आ गया........
तुम्हारी बिदायीके उन आखरी दो दिनोमे मै लगातार बातें करती रही। कबके भूले बिसरे प्रसंग,किस्से याद करती रही...उस बडबड के पीछे कारण था.....मुझे अपने मनकी अस्वस्थता,चलबिचल, तेरे बिरह्के आँसू, और न जानू क्या कुछ छुपाना था....तुझे हवाई अड्डे पे से लाने गयी थी, तब भी मैंने इसीतरह लगातार बातें की थी,साथ आयी तेरी मासी के पास....अति उत्साह और हजारों शंका कुशंकाएँ....सब मुझे दुनियासे छुपाना था!!
क्या अब तू सच मे पराई हो गयी?तुझे एक किसी इख्तियारसे कुछ कहनेके दिन बीत गए??
"चलो,चलो सामान नीचे ले जाना शुरू करो....!"तेरे पिताकी आवाज़। आख़री वक़त मैंने तेरी ९ वार की कांजीवरम से दो खूबसूरत रजाईयाँ बना डाली!!कमसे तुम दोनों उसे देख तो सकोगे इस बहने, इस्तेमाल तो होंगी...वरना वहाँ पड़े,पड़े उनका क्या हश्र होता??राघव ने ख़रीदी हुई किताबे निकालके इनकी बक्सों मे जगह बना ली। मैंने बादमे सी-मेल से उन किताबोंको भेज देनेका सोंच लिया....
हम सब परिवारवाले तुझे बिदा करने नीचे आ गए। विमान सुबह ४ बजे उडनेवाला था। मुझे सभी ने हवाई अड्डे पे जानेसे रोका। तेरे पिता और भाई गाडीमे बैठे, साथ तू और राघव भी......
उस एक मोतीकी चाह अधूरी ही रह गयी...अब तेरा मेरा ये बिरह कितने दिनोका??गाडी चल पडी तो मन बोला, जा मेरे प्यारे पँछी...जा उड़ जा....उड़ जा अपने आसमान मे दूर,दूर, ऊचाईयों तक पोहोंच जा...!लेकिन मेरी चिडिया,जब कभी माँ याद आए,इस घोंसलेमे उडके चली आना...मेरे पंखोंसे अधिक सुरक्षित,शीतल जगह तुझे दुनिया मे दूसरी कोई नही मिलेगी। थक जाए तो विश्राम के लिए चली आना। अब तो हमारे आकाशभी अलग-अलग हो गए हैं...तेरे आकाशमे मुक्त उड़ान भर ले मेरे बच्चे!!पर इस घोंसलेको भुला न देना!!
जब तेरी दुनिया मे सूरज पूरबमे लालिमा बिखेरेगा,तब मेरे यहाँ सूनी-सी शाम ढलेगी...तभी तो लगता है, हमारे आसमान,हमारे क्षितिज अब कितने जुदा हो गए??
समाप्त
4 टिप्पणियाँ:
Subscribe to: Post Comments (Atom)
Blog Archive
- ▼ 2009 (68)
- ▼ April (19)
- "The light by a lonely path".. शमा
- बोहोत दिनों बाद....
- एकबार फिर दुविधा ! ३
- क्षमा
- एक बार फिर दुविधा...अन्तिम कड़ी.
- एक बार फिर दुविधा ! ४६
- एक बार फिर दुविधा ! १
- एक बार फिर दुविधा ! २
- एक बार फिर दुविधा ! ४
- एक बार फिर दुविधा ! ५
- एक बार फिर दुविधा ! ६
- एक बार फिर दुविधा ! ७
- एक बार फिर दुविधा ! ८
- एक बार फिर दुविधा ! ९
- एक बार फिर दुविधा ! १०
- एक बार फिर दुविधा ! ११
- एक बार फिर दुविधा ! १२
- एक बार फिर दुविधा ! १३
- एक बार फिर दुविधा ! १४
- ► March (47)
- एक बार फिर दुविधा ! १५
- एक बार फिर दुविधा! १६
- एक बार फिर दुविधा १७
- एक बार फिर दुविधा १८
- एक बार फिर दुविधा ! १९
- एक बार फिर दुविधा ! २०
- एक बार फिर दुविधा ! २१
- एक बार फिर दुविधा! २२
- एक बार फिर दुविधा, २३
- एक बार फिर दुविधा,! २४
- एक बार फिर दुविधा! २५
- एक बार फिर दुविधा! २६
- एक बार फिर दुविधा! २७
- एक बार फिर दुविधा, ! २८
- एक बार फिर दुविधा ! २९(अ)
- एक बार फिर दुविधा २९ (बी )
- एक बार फिर दुविधा ३०
- एक बार फिर दुविधा ! ३१
- एक बार फिर दुविधा, ३२
- एक बार फिर दुविधा! ३३
- ....."दुविधा"....३५
- एक राह अकेली-सी.....
- नैहर में कुर्सीपे अंडा देती मुर्गी....
- दुविधा ३६ का पूर्वार्ध
- .....दुविधा ३७
- ....दुविधा ३८
- ......दुविधा ३९
- ....दुविधा ४०
- ....दुविधा ४१
- ......दुविधा ४२
- .....दुविधा ४३
- ▼ April (19)

*****
पढ़कर मानो लफ़्ज़ों की मोहताज़ी से बावस्ता हूँ, चुनाँचे आज...फिर, वही..... ओहः ह !
माँ और बेटी का सम्बंध भी निराला है। यह श्रंखला संबंधों के कई नए आयाम खोल रही है।
बहुत अच्छा लिखा है उस के लिए बधाई
एक शेर मेरा ........
वक़्त की रेत पे कुछ एसे निशान छोड़ते चलो,
की याद करे ज़माना, कुछ एसी यादे छोड़ते चलो,
please contact me on rachnasingh@hotmail.com with your email id if you are interested to also write on woman oriented issues
i am blog owner of 3 blogs
http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/
http://daalrotichaawal.blogspot.com/
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/
where many woman continuosly write on issues related to woman
see the blog and contact us
regds