Wednesday, April 22, 2009

रोई आँखें मगर....! ३

रोई आँखे मगर....3

मुझे गर्मियोंकी छुट्टी की वो लम्बी-लम्बी दोपहारियाँ याद है, जब हम बच्चे ठंडक ढूँढ नेके लिए पलंगके नीचे गीला कपड़ा फेरकर लेटते थे। कभी कोई कहानीकी किताब लेकर तो कभी ऐसेही शून्यमे तकते हुए। चार साढे चार बजनेका इंतज़ार करते हुए जब हमे बाहर निकलनेकी इजाज़त मिलती। मेरी दादीको उनके भाईने एक केरोसीनपे चलनेवाला फ्रिज दिया था। वे हमारे लिए कुछ ठंडे व्यंजन बनाती, उनमेसे एकको "दूधके फूल" कहती। फ्रिजमे दूध-चीनी मिलके जमती और फिर उसे खूब फेंटती जाती, उसका झाग हमारे गिलासोंमे डालती और खालिहानसे लाई गेहुँकी "स्ट्रा" से हम उसे पीते। खेतमे बहती नेहरमे डुबकियाँ लगाते,आमका मौसम तो होताही। माँ हमे आम काटके देती और नेहरपे बनी छोटी-सी पुलियापे बिठा देती। हमलोग ना जाने कितने आम खा जाते!!तब मोटापा नाम की चीज़ पता जो ना थी!!
माँ और दादी हम दोनों बेहनोके लिए सुंदर-सुंदर कपड़े सिया करती। दादी द्वारा मेरे लिए कढाई करके सिला हुआ एक frock अब भी मैंने सँभाल के रखा है!!
छुट्टी के दिन,जैसे के हर रविवार को, माँ आवला, रीठा तथा सीकाकायी से हमारे बाल धोती।फिर लोबानदान मे जलते कोयलोंपे बुखुर और अगर डालके उसके धुएँसे हमारे बाल सुखाती। उसकी भीनी-भीनी खुशबू आजभी साँसोंमे रची-बसी है।

यादोंकी नदीमे जब घिरके हम हिचकोले खाते हैं, तो उसका कोई सिलसिला नही होता। जिस दिन जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हुई थी, मुझे याद है,उनकी अन्तिम यात्राका आँखों देखा हाल आकाशवाणी पे सुनके मैं जारोज़ार रोई...कमेंटेटर के साथ-साथ...... उस दिन भयानक तूफान आया था। हमारे खेतके पुराने,पुराने पेड़ उखड के गिर पड़े थे, मोटी,मोटी डालें टूट गयी थी, मानो सम्पूर्ण निसर्ग मातम मना रहा हो। ये तूफान पूरे देशमे आया था उस दिन।
औरभी कैसी -कैसी यादें उमड़ रही हैं!!जब कॉलेज की पढाई के लिए मैं गाँव छोड़ शहर गयी तो दादीअम्मा के कंप कपाते होंठ और आँखों से बहता पानी याद आ रहा है।याद आ रही उनकी बताई एक बडीही र्हिदयस्पर्शी बात.....
जब मैं केवल तीन सालकी थी, तब मेरे पिता आन्ध्र मे फलोंका संशोधन करनेके लिए मेरे और माके साथ जाके रहे थे। हम तीनो चले तो गए,लेकिन किसी कारन कुछ ही महीनोमे लौटना पडा।
जब मैं थोडी बड़ी हुई तो दादीअम्मा ने बताया कि, हम लोगोंके जानेके बाद वे और दादाजी सूने-से बरामदेमे बैठ के एक दूसरेसे बतियाते थे और कहते थे अगर ये लोग लौट आए तो मैं मेरी पोती को गंदे पैर लेके पलंग पे चढ़ने के लिए कभी नही गुस्सा करूँगा , ....इन साफ सुथरी चद्दरों से तो वो छोटे-छोटे, मैले, पैरही भले!!घर के कोने-कोनेसे उसकी किलकारियाँ सुनायी पड़ती हैं.....!!!
अपूर्ण

0 comments:

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP