Friday, December 18, 2009

जा, उड़ जारे पंछी ! (२)

एक माँ का, अपनी दूर रहनेवाली बेटीसे, मूक संभाषण.....

मेरी लाडली, तुझे पता है तेरा मुझे दिया सबसे बेहतरीन तोहफा कौनसा है, जो मै कभी नही भूल सकती? तुझे कैसे याद होगा? तू सिर्फ़ ३ वर्षकी तो थी। बस कुछ दिन पहलेही स्कूल जाना शुरू हुआ था तेरा। एक दिन स्कूलसे फोन आया के स्कूल बस तुझे लिए बिना निकल गयी है। मै भागी दौड़ी स्कूल पोहोंची। स्कूलके दफ्तर मे तुझे बिठाया गया था। सहमा हुआ -सा चेहरा था तेरा। मैंने तुझे अपने पास लिया तो तेरे गालपे एक आँसू अटका दिखा। मैंने धीरेसे उसे पोंछा तब तूने मुझसे कहा," माँ! मुझे लगा तुम्हे आनेमे अगर देर हो गयी तो मै क्या करुँगी? तब पता नही कहाँ से ये बूँद मेरे गालपे आ गयी?"
जानती है, आज मुझे लगता है, काश! मै उस बूँद को मोती बनाके एक डिबियामे रख सकती! तूने मुझे दिया सबसे पेशकीमती तोहफा था वो!!सहमेसे,भोले, मासूम गालपे बह निकली एक बूँद!
क्या याद करूँ क्या न करूँ??तेरा दसवीं का साल, फिर बारवीं का साल। तुझे हर क़िस्म की किताबें पढ़नेका बेहद शौक़ था/है। साहित्य/वांग्मय मे बोहोत रुची थी तुझे और समझभी। उसीतरह पर्यावरण के बारेमेभी तू बड़ी सतर्क रहती और उसमे रुची तो थीही। वास्तुशात्र भी पसंदका विषय था। हमें लगा, वास्तुशास्त्र करते हुए तू पहले दो विषयोंपे ज़रूर ध्यान दे सकेगी, लेकिन साहित्य करते,करते वास्तुशात्र नही मुमकिन था। अंतमे बारवीं के बाद तूने वास्तुशास्त्र की पढाई शुरू कर दी.....
वास्तुशास्त्र के तीसरे सालमे तू थी और तभी तेरा और राघव का परिचय हुआ। उसके पहले मै मनोमन तेरी किसकिस से जोड़ी जमाती रहती, गर तू सुनले तो बड़ा मज़ा आएगा तुझे!
तू और राघव एक दूजेके बारेमे संजीदा हो ये सुनके मुझे असीम खुशी हुई। अव्वल तो मै समझी के राघव अपनेही शेहेर का लड़का है...फिर पता चला की उसके माता-पिता बंगलौर मे रहते हैं और राघव छात्रावास मे रहके इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा है। हल्की-सी कसक हुई दिलमे...... लेकिन वो कसक चंद पलही रही.....

मै बोहोत उत्साहित थी। उसमे मुझे मेरी दादीका मिज़ाज मिला था! ना जाने कबसे उन्हों ने अपनी पोतीओं के लिए तरह तरह की चीज़ें बनाना तथा इकट्ठी करना शुरू कर दिया था!! वही मैंने तेरे लिए शुरू कर दिया!! अपने हाथों से चादरे बनाना, किस्म-किस्म के कुशन कवर्स सीना,patchwork करना , अप्लीक करना ,कढाई करना और ना जाने क्या,क्या!
खूबसूरत तौलिये इकट्ठे किए, परदे सिये, अपनी सारी कलात्मकता ध्यान मे रख के वोलपीसेस बनाये,सुंदर-सुंदर दरियाँ इकट्ठी कर ली........ हाथके बुने lampshades ,सिरामिक और पीतल तथा ताम्बे के फूलदान......कितनी फेहरिस्त बताऊँ अब!!
दादी-परदादीके ज़मानेकी सब लेसेस, किनारे,कढाई किए हुए पुर्जे, पुराने दुपट्टे, जिनपे खालिस सोनेसे कढाई की गयी थी, जालीदार कुर्तियाँ.....इन सबका इस्तेमाल करके मै तेरे लिए चोलियाँ सीनेवाली थी!! सबसे अलग, सबसे जुदा!!
३/४ बक्से ले आयी, उनमे नीचे प्लास्टिक बिछाया, हरेक चीज़की अलग पोटलियाँ बनी, प्लास्टिक के ऊपर नेप्थलीन balls डाले गए, और ये सब रखा गया। बस अब तेरी पढाई ख़त्म होनेका इन्तेज़ार था मुझे! नौकरी तो तुझे मिलनीही थी!!सपनों की दुनियामे मै उड़ने लगी......

और एक दिन पता चला के राघव आगेकी पढाई के लिए अमरीका जानेवाला है और तूभी आगेकी पढाई वहीँ करेगी और फिर नौकरीभी वहींपे......मेरे हर सपनेपे पानी फिर गया....आगेकी पढ़ईके लिए पहले राघव और एक सालके बाद तू,इसतरह दोनों चले गए....हम पती- पत्नीकी तरह वो बक्से भी बंजारों की भांती गाँव-गाँव, शेहेर-शेहेर घुमते रहे......

सालभर के बाद तू कुछ दिनोके लिए भारत आयी। हम सब तेरे भावी ससुराल, बंगलोर, हो आए। शादीकी तारीख तय करनेकी भरसक कोशिश की पर योग नही हुआ......

अमरीका जानेके पहलेसेही मुझे तेरे मिज़ाजमे कुछ बदलाव महसूस हुआ था। तू जल्दी-से छोटी-छोटी बातों पे चिड ने लगी थी...... तेरी सहनशक्ती कम हो गयी थी। मै गौर कर रही थी पर कुछ कर नही पा रही थी .......क्या इसकी वजह मेरी बिगड़ती हुई सहेत थी? तेरे दूर जानेके खायालसे दिमाग मे भरा नैराश्य था? जोभी हो, तू आयी और और उतनीही तेजीसे वापसभी लौट गयी। दोस्त-सहेलियाँ, खरीदारी,इन सबमेसे मेरे लिए तेरे पास समय बचाही नही। पहलेकी तरह हम दोनोमे कोई अन्तरंग बातें या गपशप होही नही पाई।
क्रमशः

3 टिप्पणियाँ:

vipinkizindagi said...

बहुत प्यारा। सुन्दर।

डा० अमर कुमार said...

बड़ा सिलसिलेवार लिखा है...कैसे एक एक छोटी बात भी सहेज कर
रख छोड़ी थी ? जैसे आज के लिये ही !

Udan Tashtari said...

बच्चे ऐसे ही बड़े हो जाते है...हम उनसे वही पुरानी उम्मीदें लिए बैठे रहते हैं. अच्छा लिख रहीं हैं, जारी रहिये.,

4 comments:

निर्झर'नीर March 17, 2010 at 2:35 AM  

मार्मिक अभिव्यक्ति चलचित्र की तरह मानस पटल पे चलती हुई ..आभार

Asha Joglekar July 19, 2010 at 12:08 PM  

Bahut sunder beti se man ka aisahee rishta hota hai. lagta hai raghaw ke sath kuch anban chal rahee hai. Aage ki kadi ka intjar hai.

Asha Joglekar July 19, 2010 at 12:09 PM  

Bahut achcha lekh. man beti ka rishta hee aisa hota hai.
agali kadi kee parteeksha men.

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